Wednesday, August 17, 2011

सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |

या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ||

शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |

हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ||


हे हंसवाहिनी ज्ञानदायनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥


साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥


लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें
हम मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा माँ,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2
हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥

ध्यान

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि।

धियो यो नः प्रचोदयात्॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।

वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि

॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

No comments: