Wednesday, August 17, 2011

आरंभ है प्रचंड

आरंभ है प्रचंड, बोलें मस्तकों के झुंड, आज जंग की घडी की तुम गुहार दो |

आरंभ है प्रचंड, बोलें मस्तकों के झुंड, आज जंग की घडी की तुम गुहार दो |
आन बान शान, या की जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो || (२)
आरंभ है प्रचंड...

मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले, वही तो एक सर्व शक्तिमान है |
विश्व की पुकार है, ये भागवत का सार है, की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है ||
कौरवों की भीड़ हो, या पांडवों का नीड़ हो, जो लड़ सका है वो ही तो महान है |
जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं, क्या जिन्दगी है ठोकरों पे मार दो ?
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यों डरें, ये जाके आसमान में दहाड़ दो ||
आरंभ है प्रचंड ...

हो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव, या की हार का वो घाव तुम ये सोच लो | (२)
या की पूरे भाल पर जला रहे विजय का लाल, लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो |
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या की केसरी हो ताल तुम ये सोच लो ||
जिस कवि की कल्पना में जिन्दगी हो प्रेम गीत, उस कवि को आज तुम नकार दो |
भीगती नसों में आज, फूलती रगों में आज, आग की लपट का तुम बगार दो ||

आरंभ है प्रचंड, बोलें मस्तकों के झुंड, आज जंग की घडी की तुम गुहार दो |
आन बान शान, या की जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो |
आरंभ है प्रचंड ...

No comments: