सूक्तियाँ

सूक्तियाँ
  1. राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है।
    सुब्रह्मण्यम भारती
2.       अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"
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महामना मदनमोहन मालवीय
3.       हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? 
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शास्त्री फ़िलिप
  1. कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कारएक सोचएक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है।
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    भरत प्रसाद
  2. बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता हैवह प्रकृति की देन हैतीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। 
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    अष्टावक्र
  3. देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। 
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    शिव खेड़ा
  4. यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैंकिनारे पर खड़े रहनेवाले नहींमगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। 
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    वल्लभ भाई पटेल
  5. दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि हैमन से दुखों की चिंता न करना। 
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    वेदव्यास
9.       पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। 
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महात्मा गांधी
10.    हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।
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अज्ञात
11.    मुट्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था हैइतिहास की धारा को बदल सकते हैं।
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महात्मा गांधी
12.    रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है।
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मदनमोहन मालवीय
13.    उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है।
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डॉ. प्रेम जनमेजय
14.    वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त हैवही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैंवही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो।
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चाणक्य
  1. जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करतेपरमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते। 
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    विवेकानंद
  2. कहानी जहाँ खत्म होती हैजीवन वहीं से शुरू होता है। 
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    संजीव
  3. वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। 
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    महात्मा गांधी
  4. जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक      नहीं कर सकते। 
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    सरदार पटेल
  5. जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं हैयह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है।  
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    विवेकानंद
  6. ईश्वर बड़े बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है किंतु छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता।  
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    रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  7. महापुरुष वे ही होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के रंगों में रंगे जाने के बाद भी अपने व्यक्तित्व की पहचान को खोने नहीं देते। मुक्ता
  8. रंगों का स्वभाव है बिखरना और मनुष्य का स्वभाव है उन्हें समेटकर अपने जीवन को रंगीन बनाना।
    मुक्ता
  9. आतंक का जन्म असंतोष से होता है असमानता से इसे हवा मिलती है और यह अपनी आग में हज़ारों को लेकर जल मरता है 
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    मुक्ता
  10. बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं हैसंपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं।
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    स्वामी रामदेव
  11. विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धिमें और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभावमें होती है। 
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    आदित्य चौधरी
  12. शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। 
    लोकमान्य तिलक
  13. स्वदेशी उद्योगशिक्षाचिकित्सा, ज्ञान, तकनीक,  खानपानभाषावेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। बाबा रामदेव
  14. जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। 
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    भगवान महावीर
  15. अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। 
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    चंद्रशेखर वेंकट रमण
  16. सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। 
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    कौटिल्य अर्थशास्त्र
  17. जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता हैउसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। 
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    छांदोग्य उपनिषद
  18. कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है। 
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    स्वामी विवेकानंद
  19. जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते। 
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    व्यास
  20. पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता हैजप से पाप दूर होता हैमौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता। चाणक्य
  21. शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है। पंचतंत्र
  22. ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। 
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    भवभूति
  23. कुमंत्रणा से राजा काकुसंगति से साधु काअत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है।विदुर
  24. सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है।
    श्री अरविंद
  25. बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं हैक्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है।
    शंकराचार्य
  26. खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये      जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं। श्री परमहंस योगानंद
  27. फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। 
    गीता
  28. बच्चों को पालनाउन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य हैक्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। 
    स्वामी रामसुखदास
  29. समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है।
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    न्यायमूर्तिकृष्णस्वामी अय्यर
  30. मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान हैशुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान हैआत्मा बुद्धि से महान हैऔर आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। -स्वामी शिवानंद
  31. जो कर्म छोड़ता है वह गिरता हैकर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है।
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    महात्मा गाँधी
  32. जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। विनोबा
  33. विश्व की सर्वश्रेष्ठ कलासंगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। -श्री परमहंस योगानंद
  34. तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैंजबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। 
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    श्री परमहंस योगानंद
  35. दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होतामूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेराअँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके।विष्णु प्रभाकर
  36. देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। 
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    प्रेमचंद
दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। -कालिदास

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