Thursday, September 1, 2011

प्रेरणा गीत



गीत – १

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,मन का विश्वास कमजोर हो ना

हर तरफ जुल्म है, बेबसी है,सहमा सहमा सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढता ही जाये,जानें कैसे ये धरती थमीं है
बोझ ममता से तू ये उठाले,तेरी रचना का ये अंत हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे, भूलकर भी कोइ भूल हो ना

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,मन का विश्वास कमजोर हो ना

दूर अज्ञान के हो अंधेरे,तू हमें ज्ञान की रोशनीं दे
हर बुराई से बचके रहें हम,जितनी भी दे, भली जिन्दगी दे
बैर हो ना किसि का किसि से,भावना मन में बदले कि हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे,भूलकर भी कोइ भूल हो ना

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,मन का विश्वास कमजोर हो ना

हम ना सोचें हमें क्या मिला है,हम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाटें सभी को,सबका जीवन हीं बन जाये मधुबन
अपनी करुणा का जल तू बहाके,कर दे पावन हर एक मन का कोना
हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे,भूलकर भी कोइ भूल हो ना

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,मन का विश्वास कमजोर हो ना

हम अंधेरे में है, रोशनीं दे,खो ना दे खुद को हीं दुश्मनी से
हम सजा पायें अपने किये की,मौत भी हो तो सहले खुशी से
कल जो गुजरा है फिर से ना गुजरे,आने वाला वो कल ऐसा हो ना
हम चलें नेक रस्ते पे, हमसे,भूलकर भी कोइ भूल हो ना

इतनी शक्ति हमें देना दाता ,मन का विश्वास कमजोर हो ना



गीत – २

हमको मनकी शक्ति देना, मन विजय करें ।
दूसरोंकी जयसे पहले, खुदकी जय करें ।
हमको मनकी शक्ति देना ॥

भेदभाव अपने दिलसे, साफ कर सकें ।
दूसरोंसे भूल हो तो, माफ कर सकें ।
झूठसे बचे रहें, सचका दम भरें ।
दूसरोंकी जयसे पहले,

मुश्किलें पडें तो हमपे, इतना कर्म कर ।
साथ दें तो धर्मका, चलें तो धर्म पर ।
खुदपे हौसला रहे, सचका दम भरें ।
दूसरोंकी जयसे पहले,

गीत – ३

नदिया चले, चले रे धारा,नदिया चले, चले रे धारा,
चन्दा चले, चले रे तारा,तुझ को चलना होगा,
तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा

जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है,जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है
आँधी से, तूफ़ान से डरता नहीं है
तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें,तू ना चलेगा तो चल देंगी राहें
मंजिल को तरसेंगी तेरी निगाहें,

तुझ को चलना होगा-३

नदिया चले, चले रे धारा,नदिया चले, चले रे धारा,
चन्दा चले, चले रे तारा,तुझ को चलना होगा,
तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा


पार हुआ वो रहा जो सफर में,पार हुआ वो रहा जो सफर में
जो भी रुका, घिर गया वो भंवर में
नाव तो क्या, बह जाए किनारा,नाव तो क्या, बह जाए किनारा
बड़ी ही तेज समय की है धारा
तुझ को चलना होगा-३
नदिया चले, चले रे धारा,नदिया चले, चले रे धारा,
चन्दा चले, चले रे तारा,तुझ को चलना होगा,
तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा,तुझ को चलना होगा



गीत – ४

मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

बैलों के गले में जब घुँघरू जीवन का राग सुनाते हैं
ग़म कोस दूर हो जाता है खुशियों के कंवल मुस्काते हैं
सुन के रहट की आवाज़ें यूँ लगे कहीं शहनाई बजे
आते ही मस्त बहारों के दुल्हन की तरह हर खेत सजे

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

जब चलते हैं इस धरती पे हल ममता अँगड़ाइयाँ लेती है
क्यों ना पूजें इस माटी को जो जीवन का सुख देती है
इस धरती पे जिसने जन्म लिया उसने ही पाया प्यार तेरा
यहाँ अपना पराया कोई नही हैं सब पे है माँ उपकार तेरा

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

ये बाग़ हैं गौतम नानक का खिलते हैं अमन के फूल यहाँ
गांधी, सुभाष, टैगोर, तिलक ऐसे हैं चमन के फूल यहाँ
रंग हरा हरिसिंह नलवे से रंग लाल है लाल बहादुर से
रंग बना बसंती भगतसिंह से रंग अमन का वीर जवाहर से

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती
मेरे देश की धरती

गीत – ५



मेरा रंग दे बसंती चोला, माए रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला

दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है
एक बार इस राह में मरना सौ जन्मों के समान है
देख के वीरों की क़ुरबानी अपना दिल भी बोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ...

जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे
जिसे पहन झाँसी की रानी मिट गई अपनी आन पे
आज उसी को पहन के निकला हम मस्तों का टोला
मेरा रंग दे बसंती चोला ...



गीत – ६

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम

भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा, मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...

शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी, जो थीं अमावस अंधेरी
युग\-युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं, मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया


ऐसा ही सुख ..



गीत – ७

तू ना रोना, के तू है भगत सिंह की माँ
मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं
डोली चढ़के तो लाते है दुल्हन सभी
हँसके हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं

जलते भी गये कहते भी गये
आज़ादी के परवाने
जीना तो उसीका जीना है
जो मरना देश पर जाने

जब शहीदों की डोली उठे धूम से
देशवालों तुम आँसू बहाना नहीं
पर मनाओ जब आज़ाद भारत का दिन
उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम
तेरी राहों मैं जां तक लुटा जायेंगे
फूल क्या चीज़ है तेरे कदमों पे हम
भेंट अपने सरों की चढ़ा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन

कोई पंजाब से, कोई महाराष्ट्र से
कोई यू पी से है, कोई बंगाल से
तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम
फूल हर रंग के, आज हर डाल से
नाम कुछ भी सही पर लगन एक है
जोत से जोत दिल की जगा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन ...

तेरी जानिब उठी जो कहर की नज़र
उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम
तेरी धरती पे है जो कदम ग़ैर का
उस कदम का निशाँ तक मिटा देंगे हम
जो भी दीवार आयेगी अब सामने
ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे



गीत – ८



इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल
जग में रह जाएंगे, प्यारे तेरे बोल
दूजे के होंठों को, देकर अपने गीत
कोई निशानी छोड़, फिर दुनिया से डोल
इक दिन बिक जायेगा ...

ला ला ललल्लल्ला

अनहोनी पग में काँटें लाख बिछाए
होनी तो फिर भी बिछड़ा यार मिलाए - (२)
ये बिरहा ये दूरी, दो पल की मजबूरी
फिर कोई दिलवाला काहे को घबराये, तरम्पम,
धारा, तो बहती है, बहके रहती है
बहती धारा बन जा, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ...

परदे के पीछे बैठी साँवली गोरी
थाम के तेरे मेरे मन की डोरी - (२)
ये डोरी ना छूटे, ये बन्धन ना टूटे
भोर होने वाली है अब रैना है थोड़ी, तरम्पम,
सर को झुकाए तू, बैठा क्या है यार
गोरी से नैना जोड़, फिर दुनिया से डोल
एक दिन ..

गीत – ९

ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें
और बदी से टलें
ताकि हंसते हुये निकले दम

जब ज़ुल्मों का हो सामना
तब तू ही हमें थामना
वो बुराई करें
हम भलाई भरें
नहीं बदले की हो कामना
बढ़ उठे प्यार का हर कदम
और मिटे बैर का ये भरम
नेकी पर चलें ...

ये अंधेरा घना छा रहा
तेरा इनसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर
कुछ न आता नज़र
सुख का सूरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में वो दम
जो अमावस को कर दे पूनम
नेकी पर चलें ...

बड़ा कमज़ोर है आदमी
अभी लाखों हैं इसमें कमीं
पर तू जो खड़ा
है दयालू बड़ा
तेरी कृपा से धरती थमी
दिया तूने जो हमको जनम
तू ही झेलेगा हम सबके ग़म
नेकी पर चलें ...


गीत – १०

आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम ...

उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट पे हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की,
इस मिट्टी से ...

ये है अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला है आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्‍मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की
इस मिट्टी से ...

देखो मुल्क मराठों का ये यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पावत पे आग लगी थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
यहाँ शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से ...

जलियाँ वाला बाग ये देखो यहाँ चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इनक़लाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जान की
इस मिट्टी से ...

ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से ...


गीत – ११

नन्हा मुन्ना राही हूँ, देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग, जय हिन्द, जय हिन्द, जय हिन्द

रस्ते पे चलूंगा न डर-डर के
चाहे मुझे जीना पड़े मर-मर के
मंज़िल से पहले ना लूंगा कहीं दम
आगे ही आगे बढाऊँगा कदम
दाहिने बाएं दाहिने बाएं, थम!
नन्हा मुन्ना राही हूँ...

धूप में पसीना बहाऊँगा जहाँ
हरे-भरे खेत लहराएगें वहाँ
धरती पे फाके न पाएगें जन्म
आगे ही आगे ...

नया है ज़माना मेरी नई है डगर
देश को बनाऊँगा मशीनों का नगर
भारत किसी से न रहेगा कम
आगे ही आगे ...

बड़ा हो के देश का सितारा बनूंगा
दुनिया की आँखो का तारा बनूंगा
रखूँगा ऊँचा तिरंगा हरदम
आगे ही आगे ...

शांति की नगरी है मेरा ये वतन
सबको सिखाऊँगा प्यार का चलन
दुनिया मे गिरने न दूँगा कहीं बम
आगे ही आगे ...



गीत – १२

छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी
नये दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आज पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं
क्या देखें उस मंजिल को जो छोड़ चुके हैं
चाँद के दर पे जा पहुंचा है आज ज़माना
नये जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

हमको कितने ताजमहल हैं और बनाने
कितने हैं अजंता हम को और सजाने
अभी पलटना है रुख कितने दरियाओं का
कितने पवर्त राहों से हैं आज हटाने
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

आओ मेहनत को अपना ईमान बनाएं
अपने हाथों को अपना भगवान बनाएं
राम की इस धरती को गौतम की भूमी को
सपनों से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाएं
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

हर ज़र्रा है मोती आँख उठाकर देखो
माटी में सोना है हाथ बढ़ाकर देखो
सोने की ये गंगा है चांदी की यमुना
चाहो तो पत्थर पे धान उगाकर देखो
नया खून है, नयी उमंगें, अब है नयी जवानी
हम हिन्दुस्तानी, हम हिन्दुस्तानी ...

गीत – १३

ज्योति कलश छलके ,ज्योति कलश छलके..
हुए गुलाबी , लाल सुनहले,रंग दल बादल के...
ज्योति कलश छलके...

घर आनंद वन उपवन उपवन,
करती ज्योति अमृत के सिंचन,
मंगल घट ढ़लके,२
ज्योति कलश छलके...

अंबर कुंकुम कण बरसाये ,
फ़ूल पखुरिया पर मुसकाये,
बिंदु तुही न जलके,२
ज्योति कलश छलके...

पाट पाट बिरवा हरियाला,
धरती का मुख हुआ उजाला,
सच सपने कल के,२
ज्योति कलश छलके...

उषा नें आंचल फ़ैलाया,
फ़ैली सुख की शीतल छाया,
नीचे आंचल के,२
ज्योति कलश छलके...

ज्योति यशोदा धरती गैय्या ,
नील गगन गोपाल कन्हैय्या ,
श्यामल छबि छलके,२
ज्योति कलश छलके...

गीत – १४

आ चल के तुझे, मैं ले के चलूं
इक ऐसे गगन के तले
जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो
बस प्यार ही प्यार पले
इक ऐसे गगन के तले

सूरज की पहली किरण से, आशा का सवेरा जागे (२)
चंदा की किरण से धुल कर, घनघोर अंधेरा भागे (२)
कभी धूप खिले कभी छाँव मिले
लम्बी सी डगर न खले
जहाँ ग़म भी नो हो, आँसू भी न हो ...

जहाँ दूर नज़र दौड़ आए, आज़ाद गगन लहराए
जहाँ रंग बिरंगे पंछी, आशा का संदेसा लाएं (२)
सपनो मे पली हँसती हो कली
जहाँ शाम सुहानी ढले
जहाँ ग़म भी न हो, आँसू भी न हो ...
आ चल के तुझे मैं ले के चलूं ...


गीत – १५

गिरकर उठना उठकर चलना यह क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क ना पड़ता किसी जीत या हार का ॥धृ॥

जो भी होता है घटना क्रम रचता स्वयं विधाता है
आज लगे जो दंड वही कल पुरस्कार बन जाता है
निश्चित होगा प्रबल समर्थन अपने सत्य विचार का ॥१॥

कर्मोंका रोना रोने से कभी ना को‌ई जीता है
जो विषधारण कर सकता है वह अमृत को पी जाता है
संबल और विश्वास हमें है अपने दृढ आधार का ॥२॥

त्रुटियोंसे कुछ सीख मिले तो त्रुटियाँ हो जाती वरदान
मानव सदा अपूर्ण रहा है पूर्ण रूप होते भगवान
चिंतन मंथन से पथ मिलता त्रुटियों के परिहार का ॥३॥



गीत – १६

जय भारती, वंदे भारती

सर पे हिमालय का छत्र है
चरणों में नदियाँ एकत्र है
हाथों में वेदों के पत्र हैं
ऐऽऽऽ देश नही ऐसा अनयत्र है ॥२॥

जय भारती, वंदे भारती - २

धुऐं से पावन ये व्योम हैं
घर-घर में होता जहाँ होम हैं ॥२॥
पुलकित हमारे रोम-रोम हैं - २
आदि-अनादि शब्द ओम है

जय भारती, वंदे भारती - २
वंदे मातरम्‌ - ४

जिस भूमि पे जन्म लिया राम नें
गीता सुनाई जहाँ श्याम नें ॥२॥
पावन बनाया चारों धाम नें - २
स्वर्ग भी लजाये जिसके सामने

वंदे मातरम्‌ - ४

सर पे हिमालय का छत्र है,
चरणो में नदियाँ एकत्र है,
हाथों में वेदों के पत्र हैं,
ऐऽऽऽ देश नही ऐसा अनयत्र है

जय भारती, वंदे भारती - २
वंदे मातरम्‌ -

No comments: